Tuesday, October 2, 2018

ख़बर का मतलब होता है- शादी हो जाना या घर

झसे अक्सर ये सवाल किया जाता है कि मैं सेक्शुअली एक्टिव हूं या नहीं. कुछ तो मुझसे सीधे यही पूछ लेते हैं कि मेरी 'हेल्थ' ठीक भी है या नहीं.
एक को तो ये जानने में बहुत दिलचस्पी है कि क्या मेरी दिलचस्पी पुरुषों में है.
मैं कहता हूं कि प्रिय दोस्त, अब समझदार हो जाओ, अगर ऐसा होता तो मैं किसी पुरुष के साथ रह रहा होता.
अगर मैं ऐसे सवालों का जवाब ग़ुस्से में देता हूं तो तुरंत मुझ पर दोस्ताना न होने का लेबल चस्पा कर दिया जाता है. इसलिए मैं ख़ामोश रह जाता हूं.
कौन कहता है कि समाज मेरे मामले में ज़बरदस्ती अपनी नाक घुसा रहा है? वो तो बस मेरे बारे में चिंतित हैं और मुझे उनसे शिकायत नहीं होनी चाहिए.
सीधे ये पूछने के बजाए कि मैं कुंवारा हूं या नहीं, कुछ लोग यूं सवाल पूछते हैं, "घर बसा लिया या नहीं."
और मैं इस सवाल के जवाब को कुछ मज़ेदार बनाते हुए कहता हूं, "मैं इस दिशा में काम कर रहा हूं. अच्छा कमा रहा हूं, मेरे ऊपर कोई क़र्ज़ नहीं है और मेरा स्वास्थ्य भी बिलकुल ठीक है."
और फिर होता है वही सवाल, "तुमने शादी की या नहीं?", मुझे लगता है कि मेरा जैसा व्यक्ति जो 'लाइफ़ में सेटल' नहीं हुआ है उसके लिए सबसे ज़्यादा परेशान करने वाला सवाल यही है.
सिंगल होने की वजह से मुझे बहुत सी 'सुविधाओं' का 'लाभ' भी मिला है. ये समाज का एक वर्ग हमें देता है.
मेरे एक पूर्व बॉस कहते थे, "तुम सिंगल हो, सप्ताहांत पर दफ़्तर आ सकते हो, देर तक काम करना तुम्हारे लिए समस्या नहीं होगी."
मैं उनसे कहना चाहता था कि बॉस, मेरे भी अपने कुछ काम हैं. लेकिन मैंने कभी ये कहा नहीं.
मेरे घर के मालिक ने एक बार कहा, "तुम अकेले हो, सबसे ऊपर की मंज़िल पर रहो, वहां कपड़े सुखाने में भी मदद मिलेगी. बीच वाली मंज़िल पर फ़ैमिली रह सकती है."
मैं भी दूसरों की तरह बराबर किराया दे रहा हूं फिर मैं ही सबसे ऊपर क्यों रहूं?
मेरे एक दोस्त ने अपनी गृह प्रवेश पार्टी का न्यौता देते हुए कहा, "तुम सिंगल हो, क्या तुम्हें भी न्यौते की ज़रूरत है? इस व्हाट्सएप संदेश को ही न्यौता समझो."
"तो न्यौते का कार्ड पाने के लिए भी शादीशुदा होना ज़रूरी है? मेरे लिए तो ये बात ख़बर जैसी ही है."
ज़रूरत पड़ने पर मुझे देर तक काम करने में परेशानी नहीं है. घरेलू मामलों में मैं कुछ चीज़ों को लेकर साथ रहने वालों के लिए समझौता भी कर सकता हूं. और हां, मैं पेड़ बचाओ अभियान का समर्थक भी हूं. मैं किसी कार्ड का इंतज़ार नहीं कर रहा हूं.
शादी कर रहा हूं या नहीं कर रहा हूं या देर कर रहा हूं, ये मेरी पसंद का मामला हो सकता है. बात जो भी हो, समाज को मेरी बड़ी चिंता है.
मुझे भले ही किसी सलाह की ज़रूरत न हो लेकिन समाज के पास मेरे लिए इसकी भरमार है.
मुफ़्त नुस्ख़े, सलाह, अगर मैं अकेला ही रहा तो दस-बीस साल बाद क्या होगी इसकी भविष्यवाणियां और न जाने क्या क्या.
एक साथी ने मुझसे कहा कि मैं ऐसे लोगों से जुड़ूं जो मेरी जैसी ही स्थिति में हैं. मैंने पूछा, "आर्थिक स्थिति में या भौगोलिक स्थिति में?"
"नहीं वो लोग जिन्होंने सही समय पर शादी नहीं की. तुम जानते हो, तुम लोग एक दूसरे को समझ सकते हो और बाक़ी जीवन साथ में अच्छे से बिता सकते हो."
मैंने कभी किसी से ये नहीं कहा कि मैंने शादी करने का सही समय गंवा दिया. ना ही मैंने कभी किसी से ये कहा कि मैं जीवनसाथी तलाश रहा हूं.
पहले मैं अपने दोस्तों, रिश्तेदारों की शादियों में और अन्य पारिवारिक समारोहों में जाया करता था. शादी के निमंत्रण कार्ड का सम्मान करना मेरी प्राथमिकता हुआ करता था. लेकिन अब मैं अपने आप को बदलने के लिए मजबूर हो गया हूं.
क्योंकि ऐसे मौकों पर मुझसे कुछ ज़्यादा ही सवाल किए जाते हैं.
"इतने दिनों बाद आपको देखकर ख़ुशी हुई. पांच साल हो गए, है ना? आपकी बीवी कहां हैं?"
और फिर मेरे अगल-बगल देखने और मुझे अकेले पाने के बाद आती हो वही लाइन- "ओह, अभी तक सिंगल ही हो?"
मुझे लगता है कि अब मेरे लिए समय आ गया है जब इस पर रोक लगा दूं और बहुत सोच समझकर ही लोगों से बात करूं और समारोहों में जाऊं.
अब जब मैं छुट्टियों के बाद अपने गृहनगर से लौटकर ऑफ़िस आता हूं तो मैं जानबूझकर खाली हाथ आता हूं. अपने गृहनगर की मशहूर मिठाई नहीं लाता. क्योंकि मैं उसी सवाल से बचना चाहता हूं- "कोई ख़ास ख़बर है क्या?"
आमतौर पर इस ख़ास ख़बर का मतलब होता है- शादी हो जाना या घर में बच्चा होना.
मैं स्कूल के दिनों में क्रिकेट के बजाए हॉकी को पसंद करता था. इस पर कभी सवाल नहीं उठे.
जब सब लोग ट्रेंडी नई मोटरसाइकिलों ख़रीद रहे थे, मैं पुराने दौर की बाइक पसंद कर रहा था.
मेरे रंग पर हल्के रंग के कपड़े अच्छे लगते थे लेकिन मुझे गहरे रंग पहनना पसंद था.
मैं किसी और क्षेत्र में पढ़ाई की और किसी बिल्कुल अलग क्षेत्र में काम कर रहा हूं.
मैं उन सभी लोगों का शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने मेरी प्राथमिकताओं को समझा और मुझे प्रेरित किया. मेरे दोस्तों और समाज ने मुझे बहुत प्रोत्साहन दिया और मैं जीवन में आगे बढ़ सका.
लेकिन जब मेरे सिंगल रहने के सोचे-समझे फ़ैसले की बात आती है तो मुझे वो प्रोत्साहन नहीं मिलता.
मैं शादी कर भी सकता हूं और नहीं भी. लेकिन मुझे अभी तक जीवनसाथी नहीं मिला है. मैं इश्क़ में अपनी नाकामी से आगे बढ़ चुका हूं. लेकिन ज़िंदगी में आगे बढ़ना एक अलग ही प्रश्न है. मैं अभी वो फ़ैसला लेने की स्थिति में नहीं आ पाया हूं.
फिलहाल तो मैं सिंगल ही हूं. आज का सच यही है, कल की बात कुछ और हो सकती है.
क्या मुझे फिर से इश्क़ होगा? हो सकता है, जब होगा तब वो भी देखा जाएगा.

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