Monday, October 15, 2018

मैं जितनी अकेली हूं, उतनी ही आत्मनिर्भर भी'

क्या पाकिस्तान में भी ये मुद्दा इतना ही बड़ा है जितना भारत में नज़र आ रहा है, और अगर है तो फिर अब तक पाकिस्तानी महिलाएं खुलकर सामने क्यों नहीं आ रही हैं?
पाकिस्तान की पत्रकार सबाहत ज़कारिया कहती हैं, "पाकिस्तान में नौकरी के अवसर इतने कम हैं कि कई बार सामने आकर किसी पर आरोप लगाना आर्थिक रूप से ख़ुद को तबाह करने के बराबर होता है."
उनका कहना है कि "यहां ताक़त बहुत थोड़े से लोगों के हाथ में है और वे सब एक दूसरे से किसी न किसी तरह जुड़े हुए हैं. ऐसे में अगर एक महिला किसी का नाम लेकर उस पर आरोप लगाती है तो उस शख़्स को तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है लेकिन यह ज़रूर है कि उस महिला की ज़िंदगी बहुत मुश्किल ज़रूर हो जाती है."
"यानी इस तरह के आरोप लगाने के लिए या तो आप ख़ुद बहुत ताक़तवर हों, या फिर कुछ औरतें अपनी पहचान ज़ाहिर किए बग़ैर सामने आती हैं. लेकिन इस पर भी सवाल उठते हैं."
भारत और पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अकसर ये देखा जाता है कि इस तरह का आरोप लगाने वाली औरतों को हमदर्दी की जगह समाज से और दूसरे आरोपों का सामना करना पड़ता है.
सबाहत ज़कारिया कहती हैं कि इसकी एक वजह ये भी है कि इस तरह के आरोप को साबित करना बेहद मुश्किल काम होता है, और अगर कुछ औरतें स्क्रीनशॉट जैसे कोई सबूत पेश भी कर दें तब भी उन पर यक़ीन नहीं किया जाता.
"लेकिन मैं फिर भी आशावादी हूं. कोई भी आंदोलन एकदम ही कामयाब नहीं होता. नतीजे सामने आने में वक़्त लगता है. अब कम से कम इस बारे में बात हो रही है. औरतें एक दूसरे की मदद कर रही हैं, ज़्यादा मज़बूत हैं और मर्दों को इस बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ा है."
एक वजह शायद ये भी है कि बड़े-बड़े नामों पर आरोप लगाने के बावजूद ऐसा कम ही होता है कि महिलाओं की बातों पर यक़ीन किया जाए या फिर उन्हें इंसाफ़ मिले.
पत्रकार बेनज़ीर शाह कहती हैं, "जब गायिका मीशा शफ़ी ने ट्विटर पर ही अली ज़फ़र पर आरोप लगाया, तो कई दूसरी औरतें भी सोशल मीडिया पर सामने आईं. फिर क़ानूनी कार्रवाई भी शुरू हुई. लेकिन अगर देखा जाए तो इस केस में भी कुछ नहीं हुआ. अली ज़फ़र के काम पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. उनका ब्रैंड्स के साथ क़रार जारी रहा और उनकी फ़िल्म भी रिलीज़ हुई."
वह कहती हैं, "किसी हद तक इसमें मीडिया हाऊसों ने भी किरदार अदा किया जो उनकी फ़िल्म उस वक्त प्रमोट कर रहे थे. और इसके बाद मीशा भी ख़ामोश हो गईं और दूसरी औरतें भी. जब इस तरह के चर्चित मामले में ऐसा होता है तो इससे आप हतोत्साहित होते हैं. महिलाओं को लगता है कि अगर मीशा शफ़ी जैसी प्रसिद्ध और कामयाब महिला कुछ नहीं कर सकी तो उनके साथ क्या होगा."
बेनज़ीर शाह कहती हैं कि जब तक महिलाओं को सत्ता में हिस्सा नहीं दिया जाएगा, जब तक उन्हें ऐसी भूमिका नहीं मिलेगी जहां वह ख़ुद फ़ैसले ले सकें तब तक ऐसे आंदोलनों का कामयाब होना मुश्किल है.
वह कहती हैं, "हमारी सरकार में कितनी महिलाएं हैं? हमारी न्यायपालिका मे कितनी महिलाएं हैं? अब तक महिलाओं के हक़ के लिए जितने नए क़ानून बने हैं वे इस वजह से बनें हैं कि महिलाओं ने वे मुद्दे उठाए और उन पर काम किया. अगर न्यायपालिका और कार्यपालिका में महिलाओं को हिस्सेदार ही न बनाया जाए तो फिर बदलाव कैसे आएगा?"विक्की डोनर'' में तो अडल्ट तस्वीरें लगी दिखाई थीं लेकिन यहां तो एक वॉशरूम है जहां दीवार, कमोड, नल और वॉशबेसिन हैं.
पहली बार मैं काफ़ी असहज महसूस कर रहा था. अपने कमरे में हस्तमैथुन करना और बेचने के लिए करना, दोनों में बहुत फ़र्क़ है.
वॉशरूम में एक प्लास्टिक के कंटेनर पर मेरा नाम लिखा था. मैंने हस्तमैथुन करने के बाद उसे वॉशरूम में छोड़ दिया. मुझे इसके एवज में 400 रुपए दिए गए.
मेरी उम्र 22 साल की है और मैं एक इंजीनियरिंग का छात्र हूं.
मेरी उम्र में गर्लफ्रेंड की चाह होना और किसी के प्रति यौन आकर्षण होना आम बात है.
मैं जिस छोटे शहर से आता हूं वहां शादी से पहले संबंध बनाना इतना आसान नहीं होता.
मुझे लगता है कमोबेश यही स्थिति लड़कियों की भी होती है.
ऐसे में लड़कों के लिए हस्तमैथुन एक विकल्प बनता है. लेकिन मुझे क्या पता था कि जिसे कल तक बर्बाद करता था उसे आज बेचने जाने लगूंगा.
स्पर्म डोनेशन के बारे में मैंने अख़बार में एक रिपोर्ट पढ़ी थी.
इससे पहले मैंने रक्तदान तो सुना था, लेकिन स्पर्म डोनेशन शब्द शायद पहली बार पढ़ा था.
मेरी जिज्ञासा और बढ़ी और मैंने उस रिपोर्ट को पूरा पढ़ा. रिपोर्ट पढ़ी तो पता चला कि हमारे देश में ऐसे लाखों दंपती हैं जो स्पर्म की गुणवत्ता में कमी के कारण बच्चे पैदा नहीं कर पा रहे हैं और इसी वजह से स्पर्म डोनेशन का दायरा तेज़ी से बढ़ रहा है.
मुझे ये पता चला कि दिल्ली के जिस इलाक़े में मैं रहता हूं, वहीं मेरे घर के पास स्पर्म डोनेशन सेंटर है. मेरे मन में ख्याल आया कि क्यों न जाकर देखा जाए. गोरा हूं, मेरी क़द-काठी भी ठीक है और बास्केटबॉल खेलता हूँ.
मैंने जब स्पर्म कलेक्शन सेंटर जाकर स्पर्म देने का प्रस्ताव रखा तो वहाँ बैठे डॉक्टर मुझे देखकर मुस्कुराए. वो मेरी पर्सनैलिटी से ख़ुश दिखाई दिए और डॉक्टर की ये प्रतिक्रिया देखकर मैं थोड़ा असहज हो गया.
लेकिन यहां मसला केवल मेरे लुक का नहीं था.
मैं अपने स्पर्म बेच रहा था और इसके लिए मुझे ये साबित करना था कि बाहर से जितना मज़बूत हूं अंदर से भी उतना ही तंदुरुस्त होना चाहिए.
डॉक्टर ने मुझसे कहा कि तुम्हें कुछ जांचों से गुज़रना होगा.
मेरा ब्लड सैंपल लिया गया. इसके ज़रिए एचआईवी, डायबिटीज़ और कई तरह की बीमारियों की जांच की गई.
मैं सब पर खरा उतरा तो जांच के तीसरे दिन मुझे सुबह नौ बजे बुलाया गया.

मेरे स्पर्म से कोई मां बन सकती

मुझसे एक फॉर्म भरवाया गया, जिसमें गोपनीयता की शर्तें दी गई थीं. इसके बाद मुझे प्लास्टिक का एक छोटा सा कंटेनर दिया गया और वॉशरूम का रास्ता दिखा दिया गया.
अब ये सिलसिला चल पड़ा था. मैं अपना नाम लिखा प्लास्टिक का कंटेनर वॉशरूम में छोड़ता और पैसे लेकर निकल जाता.
मुझे ये ख्याल तसल्ली देता कि मेरे स्पर्म डोनेट करने से कोई मां बन सकती है.
मुझे ये भी बताया गया कि स्पर्म डोनेट करने में तीन दिन का समय होना चाहिए यानी पहले दिन डोनेट करने के बाद अगली बार कम से कम 72 घंटे बाद ही स्पर्म डोनेट किया जा सकता है.
लेकिन अगर ज़्यादा समय बीत जाता है तो स्पर्म डेड हो जाते हैं.
'खुद को ठगा सा महसूस कर रहा था'
कुछ महीने बाद मेरे मन में ये ख्याल आने लगे कि कि क्या मुझे इस काम के पैसे काफ़ी मिल रहे हैं.
'विक्की डोनर' फिल्म में तो हीरो इस काम के ज़रिए अमीर होता जाता है और मुझे एक बार डोनेट करने के महज़ 400 रुपए मिल रहे थे.
मतलब हफ़्ते में दो बार स्पर्म डोनेट किए तो 800 रुपए मिलते और महीने में 3200 रुपए. मैं ख़ुद को ठगा सा महसूस कर रहा था.
मैंने स्पर्म सेंटर जाकर फ़िल्म का हवाला दिया और पैसे कम देने पर नाराज़गी जाहिर की.
लेकिन मेरा क़द-काठी और गोरे रंग का गुमान उस समय चकनाचूर हो गया जब सेंटर में मुझे कंप्यूटर पर वो सारे मेल दिखाए गए, जहां लोग अपना स्पर्म बेचने के लिए लाइन में लगे हुए हैं.
ख़ैर, मैंने भी ख़ुद को ये कहकर बहलाया कि मैं कोई आयुष्मान खुराना तो हूं नहीं. शायद इतने कम पैसे के कारण ही हम जैसे लोगों को डोनर कहा जाता है न कि सेलर.
भले पैसे कम हों, लेकिन मेरे जीवन पर इसका एक सकारात्मक असर पड़ा है. अब लगता है कि स्पर्म्स को यूं ही बर्बाद नहीं करना चाहिए.
दूसरा यह कि घर पर पहले की तरह हर दिन हस्तमैथुन करने की आदत छूट गई है.
मुझे ये भी पता है कि मैं कोई ग़लत काम नहीं कर रहा, लेकिन मैं इस बारे में सबको नहीं बता सकता. इसका मतलब ये क़तई नहीं है कि मैं किसी से डरता हूं. लेकिन मुझे नहीं लगता कि समाज इतना परिपक्व है कि वो इसे संवेदनशीलता से समझे.
मेरे मन में कोई अपराध बोध नहीं है पर लोगों के बीच इसे बताना भी ख़तरे से ख़ाली नहीं मैं इस बारे में अपने घर में भी किसी को नहीं बता सकता, क्योंकि मेरे माता-पिता को इस बात से झटका लगेगा. हालांकि दोस्तों के बीच ये विषय टैबू नहीं है और मेरे दोस्तों के बीच अब ये आम बात है. दिक़्क़त परिवार और रिश्तेदारों के बीच है.
मुझे अपनी गर्लफ्रेंड को भी बताने में कोई दिक़्क़त नहीं है.
वैसे अभी मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है. पहले थी, लेकिन मेरी जो भी गर्लफ्रेंड होगी वो पढ़ी-लिखी होगी और मुझे लगता है कि वो इसे सही ढंग से ही लेगी.
मुझे लगता है कि पत्नियां ज़्यादा पज़ेसिव होती हैं और वो नहीं चाहेंगी कि उनका पति शौक से जाकर किसी को स्पर्म दे. मैं अपनी पत्नी को ये बात नहीं बताना चाहूंगा.
वैसे भी स्पर्म ख़रीदने वाले अविवाहित लड़कों को प्राथमिकता देते हैं और 25 तक की उम्र को ही ये इस लायक मानते हैं.
एक स्पर्म डोनर होने के नाते इसके बारे में मुझे कई चीज़ें पता हैं. मतलब स्पर्म की क़ीमत केवल स्पर्म की गुणवत्ता से ही तय नहीं होती है. आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कैसी है, माता-पिता क्या करते हैं, आपने कितनी पढ़ाई-लिखाई की है. ये सारी बातें मायने रखती हैं.
अगर आपको अंग्रेज़ी आती है तो स्पर्म की क़ीमत भी बढ़ जाती है. हालांकि अंग्रेज़ी आने वाले व्यक्ति के स्पर्म से जन्मी संतान पर क्या असर पड़ता होगा मुझे नहीं पता है, लेकिन कई लोग ऐसे स्पर्म की मांग करते हैं. इनके पास जैसे ग्राहक आते हैं, वैसी ही हमलोग से मांग भी करते हैं.
मुझे पता है कि स्पर्म डोनर की मेरी पहचान उम्र भर साथ नहीं रहेगी क्योंकि उम्र भर स्पर्म भी नहीं रहेगा. मुझे पता है कि यह पहचान मेरी मां के लिए शर्मिंदगी की वजह होगी और कोई लड़की शादी करने से इनकार कर सकती है. लेकिन क्या मेरी मां या मेरी होने वाली बीवी को ये पता नहीं होगा कि इस उम्र के लड़के हस्तमैथुन भी करते हैं. अगर स्पर्म डोनेशन को शर्मनाक मानते हैं तो हस्तमैथुन भी शर्मनाक है. लेकिन मैं मानता हूं कि दोनों में से कोई शर्मनाक नहीं है.

Monday, October 8, 2018

中国新绿色债券规定对可持续投资有何意义?

中国成为世界上第一个对“绿色债券”发行制定正式规定的国家,所谓“绿色债券”是指专门用来为可持续解决方案融资的债券。

出台新规旨在中国尽快建立一个繁荣的绿色证券市场,以便从全球私营部门筹措亟需的资本,为中国的绿色经济转型提供资金支持。

这些规定包括《绿色债券发行指引》和《绿色债券支持项目目录》(以下简称《指引》和《目录》),由中国人民银行和中国金融学会绿色金融专业委员会于去年12月22日颁布。

上述政府文件对(债券)收益的披露与利用提出了重要的要求,以确保一个透明和健全的绿色债券市场。

其中列举了中国绿色债券融资的六大类项目:节能、污染防治、资源节约与循环利用、清洁交通和清洁能源,以及生态保护和适应气候变化。
据绿色金融专业委员会指出,为解决空气污染等环境问题,中国每年需要注入的气候资金至少为2万亿人民币(3300亿美元)。

其中85%的投资必须从私营部门筹集,不分国内和国外。鉴于2014年全球债务市场规模已约达100万亿美元,众多必备的投资可通过债券筹集。

气候债券倡议组织指出,全球绿色债券市场从2011年的110亿美元增长到2015年的420亿美元,来自欧美的“玩家”主导了其中大部分市场。

但是,中国新规定的颁布标志着一个至关重要的新“玩家”入场,形势将发生全面变化。

绿色概念的中国“影子”

新《指引》的现行版本高度关注中国的环境挑战,为债券市场提供了一个“本土化”的绿色定义。它强调以污染防治和生态保护来应对中国的环境挑战,同时通过开展上游供应链项目来解决这些问题,比如净化煤炭处理和开采。

《指引》与国际标准之间存在显著的区别。其中最明显的一条是中国规定适用于清洁煤炭,而气候债券倡议则将所有与化石燃料有关的项目都排除在外。对于那些投资策略中有环境约定的机构投资者来说,这一差别十分重要;从刚刚结束的巴黎气候峰会所做出的支持淘汰煤炭和减少排放承诺的角度来说,也是如此。

围绕什么是“绿色”产生的差异并非没有先例。多边开发银行制定绿色债券适用标准,在其选择资助项目时,试图在经济发展需要和环境完整性之间寻求平衡就是一个例证。比如,世界银行绿色债券资助的巴西填埋项目尽管实现了碳减排,但处于“绿色”与“肮脏”之间的灰色地带。

国际市场上的国际投资者和潜在的中国债券发行者,都应该明白这一差别的意义。对国际投资者来说,他们必须与发行者接触并获得更多信息,以避免违背可持续投资的约定。对于那些瞄准国际市场的潜在中国发行者来说,这一差别可能导致国外市场上投资者的不同偏好。

信息披露

新《指引》中的收益披露和使用要求对国内和国外投资者来说都是重点。要确保绿色证券所资助的项目实现其环境和社会收益,完整性和透明度是基本要求。这对解决中国债券市场投资者的可能关切来说尤为重要。与经常包含自愿报告机制的发达市场不同,中国债券发行者们还有待制定健全的措施来显示资金一定会流入那些合规适用的绿色项目。《指引》中对收益的定期披露和明确分配要求的目的就是消除一些人可能产生的疑虑。

未来参与

在《指引》和《目录》颁布前,一些中国的先行者实际上已经在国际市场上体验了绿色债券发行。2015年7月,新疆金风公司成功发行了一单3亿美元的三年期绿色债券,
认购金额高达14亿美元。

去年9月,香港中电集团通过其印度子公司发行了第一单公司绿色债券,保证了9030万美元的基本建设费用,实现了风电资产的再融资。

10月,中国农业银行发行了第一单用人民币和美元计价的绿色债券,为中国绿色债券市场吸纳9.945亿美元资金。

如今中国已经明确了哪些部门和项目可以称为“绿色”,也围绕绿色债券发行制定了规则。中国可能会迅速成长为绿色债券市场最大的玩家之一。

事实上,就在中国人民银行和绿色金融专业委员会发布新规定之后不久,兴业银行就在2016年1月6日根据《指引》发行了第一单绿色资产抵押债券。债券面值约为4.016亿美元,超额认购 2.5倍。

最近,机构投资者(养老基金、保险公司、非银行机构投资者等)
获准进入股市,它们将在私有部门的融资方面发挥更重要的作用

我们有理由相信未来这些投资者将成为中国绿色债券的国内买家。实际上,它们一直以来都是传统中国债券市场的活跃主体。

《指引》还将帮助中国债券发行者接触到多样性的国际机构投资者,获得低成本的长期资本。不仅中国的海外发行对国际投资者来说至关重要,国内的发行与国际投资者的关系也将日益紧密。今年早些时候,
中国降低了国际买家进入银行间证券市场的难度,《指引》适用于该市场的事实对国际投资者来说可以在履行其信托义务的同时在中国开辟投资机遇。

生态文明

除了承诺在2030年达到煤炭消费和碳排放峰值,中国还制定了建设“生态文明”的宏伟目标。早在绿色证券的《指引》和《目录》出台前,中国金融界已经开始在股市中寻求绿色投资机会。

上交所和中证指数于2015年10月联合创立了
上证180碳效率指数,这一例子很好地表明了监管者和市场参与者已经深刻认识到金融市场中包含的气候变化和环境风险。

但是,单靠这个还远不足以涵盖所有的投资策略,也无法帮助投资者把气候变化和环境风险最小化。只有提供满足投资者各种需求的广泛绿色投资选项,可持续投资的概念才能得到完全实现。

中国绿色证券新规的出台有助于中国可持续经济增长的转型,为其筹集必需的资金。

中国政府呼吁发行者抓住绿色债券高潮的机会,获得新的资本来源, 并从世界最大经济体的新投资机遇中获益。

Tuesday, October 2, 2018

ख़बर का मतलब होता है- शादी हो जाना या घर

झसे अक्सर ये सवाल किया जाता है कि मैं सेक्शुअली एक्टिव हूं या नहीं. कुछ तो मुझसे सीधे यही पूछ लेते हैं कि मेरी 'हेल्थ' ठीक भी है या नहीं.
एक को तो ये जानने में बहुत दिलचस्पी है कि क्या मेरी दिलचस्पी पुरुषों में है.
मैं कहता हूं कि प्रिय दोस्त, अब समझदार हो जाओ, अगर ऐसा होता तो मैं किसी पुरुष के साथ रह रहा होता.
अगर मैं ऐसे सवालों का जवाब ग़ुस्से में देता हूं तो तुरंत मुझ पर दोस्ताना न होने का लेबल चस्पा कर दिया जाता है. इसलिए मैं ख़ामोश रह जाता हूं.
कौन कहता है कि समाज मेरे मामले में ज़बरदस्ती अपनी नाक घुसा रहा है? वो तो बस मेरे बारे में चिंतित हैं और मुझे उनसे शिकायत नहीं होनी चाहिए.
सीधे ये पूछने के बजाए कि मैं कुंवारा हूं या नहीं, कुछ लोग यूं सवाल पूछते हैं, "घर बसा लिया या नहीं."
और मैं इस सवाल के जवाब को कुछ मज़ेदार बनाते हुए कहता हूं, "मैं इस दिशा में काम कर रहा हूं. अच्छा कमा रहा हूं, मेरे ऊपर कोई क़र्ज़ नहीं है और मेरा स्वास्थ्य भी बिलकुल ठीक है."
और फिर होता है वही सवाल, "तुमने शादी की या नहीं?", मुझे लगता है कि मेरा जैसा व्यक्ति जो 'लाइफ़ में सेटल' नहीं हुआ है उसके लिए सबसे ज़्यादा परेशान करने वाला सवाल यही है.
सिंगल होने की वजह से मुझे बहुत सी 'सुविधाओं' का 'लाभ' भी मिला है. ये समाज का एक वर्ग हमें देता है.
मेरे एक पूर्व बॉस कहते थे, "तुम सिंगल हो, सप्ताहांत पर दफ़्तर आ सकते हो, देर तक काम करना तुम्हारे लिए समस्या नहीं होगी."
मैं उनसे कहना चाहता था कि बॉस, मेरे भी अपने कुछ काम हैं. लेकिन मैंने कभी ये कहा नहीं.
मेरे घर के मालिक ने एक बार कहा, "तुम अकेले हो, सबसे ऊपर की मंज़िल पर रहो, वहां कपड़े सुखाने में भी मदद मिलेगी. बीच वाली मंज़िल पर फ़ैमिली रह सकती है."
मैं भी दूसरों की तरह बराबर किराया दे रहा हूं फिर मैं ही सबसे ऊपर क्यों रहूं?
मेरे एक दोस्त ने अपनी गृह प्रवेश पार्टी का न्यौता देते हुए कहा, "तुम सिंगल हो, क्या तुम्हें भी न्यौते की ज़रूरत है? इस व्हाट्सएप संदेश को ही न्यौता समझो."
"तो न्यौते का कार्ड पाने के लिए भी शादीशुदा होना ज़रूरी है? मेरे लिए तो ये बात ख़बर जैसी ही है."
ज़रूरत पड़ने पर मुझे देर तक काम करने में परेशानी नहीं है. घरेलू मामलों में मैं कुछ चीज़ों को लेकर साथ रहने वालों के लिए समझौता भी कर सकता हूं. और हां, मैं पेड़ बचाओ अभियान का समर्थक भी हूं. मैं किसी कार्ड का इंतज़ार नहीं कर रहा हूं.
शादी कर रहा हूं या नहीं कर रहा हूं या देर कर रहा हूं, ये मेरी पसंद का मामला हो सकता है. बात जो भी हो, समाज को मेरी बड़ी चिंता है.
मुझे भले ही किसी सलाह की ज़रूरत न हो लेकिन समाज के पास मेरे लिए इसकी भरमार है.
मुफ़्त नुस्ख़े, सलाह, अगर मैं अकेला ही रहा तो दस-बीस साल बाद क्या होगी इसकी भविष्यवाणियां और न जाने क्या क्या.
एक साथी ने मुझसे कहा कि मैं ऐसे लोगों से जुड़ूं जो मेरी जैसी ही स्थिति में हैं. मैंने पूछा, "आर्थिक स्थिति में या भौगोलिक स्थिति में?"
"नहीं वो लोग जिन्होंने सही समय पर शादी नहीं की. तुम जानते हो, तुम लोग एक दूसरे को समझ सकते हो और बाक़ी जीवन साथ में अच्छे से बिता सकते हो."
मैंने कभी किसी से ये नहीं कहा कि मैंने शादी करने का सही समय गंवा दिया. ना ही मैंने कभी किसी से ये कहा कि मैं जीवनसाथी तलाश रहा हूं.
पहले मैं अपने दोस्तों, रिश्तेदारों की शादियों में और अन्य पारिवारिक समारोहों में जाया करता था. शादी के निमंत्रण कार्ड का सम्मान करना मेरी प्राथमिकता हुआ करता था. लेकिन अब मैं अपने आप को बदलने के लिए मजबूर हो गया हूं.
क्योंकि ऐसे मौकों पर मुझसे कुछ ज़्यादा ही सवाल किए जाते हैं.
"इतने दिनों बाद आपको देखकर ख़ुशी हुई. पांच साल हो गए, है ना? आपकी बीवी कहां हैं?"
और फिर मेरे अगल-बगल देखने और मुझे अकेले पाने के बाद आती हो वही लाइन- "ओह, अभी तक सिंगल ही हो?"
मुझे लगता है कि अब मेरे लिए समय आ गया है जब इस पर रोक लगा दूं और बहुत सोच समझकर ही लोगों से बात करूं और समारोहों में जाऊं.
अब जब मैं छुट्टियों के बाद अपने गृहनगर से लौटकर ऑफ़िस आता हूं तो मैं जानबूझकर खाली हाथ आता हूं. अपने गृहनगर की मशहूर मिठाई नहीं लाता. क्योंकि मैं उसी सवाल से बचना चाहता हूं- "कोई ख़ास ख़बर है क्या?"
आमतौर पर इस ख़ास ख़बर का मतलब होता है- शादी हो जाना या घर में बच्चा होना.
मैं स्कूल के दिनों में क्रिकेट के बजाए हॉकी को पसंद करता था. इस पर कभी सवाल नहीं उठे.
जब सब लोग ट्रेंडी नई मोटरसाइकिलों ख़रीद रहे थे, मैं पुराने दौर की बाइक पसंद कर रहा था.
मेरे रंग पर हल्के रंग के कपड़े अच्छे लगते थे लेकिन मुझे गहरे रंग पहनना पसंद था.
मैं किसी और क्षेत्र में पढ़ाई की और किसी बिल्कुल अलग क्षेत्र में काम कर रहा हूं.
मैं उन सभी लोगों का शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने मेरी प्राथमिकताओं को समझा और मुझे प्रेरित किया. मेरे दोस्तों और समाज ने मुझे बहुत प्रोत्साहन दिया और मैं जीवन में आगे बढ़ सका.
लेकिन जब मेरे सिंगल रहने के सोचे-समझे फ़ैसले की बात आती है तो मुझे वो प्रोत्साहन नहीं मिलता.
मैं शादी कर भी सकता हूं और नहीं भी. लेकिन मुझे अभी तक जीवनसाथी नहीं मिला है. मैं इश्क़ में अपनी नाकामी से आगे बढ़ चुका हूं. लेकिन ज़िंदगी में आगे बढ़ना एक अलग ही प्रश्न है. मैं अभी वो फ़ैसला लेने की स्थिति में नहीं आ पाया हूं.
फिलहाल तो मैं सिंगल ही हूं. आज का सच यही है, कल की बात कुछ और हो सकती है.
क्या मुझे फिर से इश्क़ होगा? हो सकता है, जब होगा तब वो भी देखा जाएगा.